रिश्तों में लड़ाई, रिश्तों में टकराव आए तो क्या करें? भागवत भाव से जुड़े रहने का मंत्र
जीवन में हर रिश्ते—चाहे पति-पत्नी, माता-पिता, या मित्र—कभी-कभी मनमुटाव और तनाव से गुजरते हैं। ऐसे में यदि भागवत भाव (ईश्वर-केंद्रित दृष्टि) न हो, तो रिश्ते टूटने लगते हैं।

क्यों नाराजगी होती है?
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जब हम अनुकूलता (सुख-सुविधा) की अपेक्षा करते हैं, पर प्रतिकूलता (विपरीत व्यवहार) मिलती है।
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उदाहरण: आपने परिवार के लिए सब कुछ किया, फिर भी उन्होंने आपकी भावनाओं को ठेस पहुँचाई।
“मनुष्य से नाराजगी तभी होती है जब हम उससे ‘स्वार्थपूर्ण प्रेम’ की अपेक्षा रखते हैं।”
समाधान: भागवत भाव कैसे बनाए रखें?
1. “मैंने जो किया, प्रभु के लिए किया”
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यदि आपका पति/पत्नी, बच्चे या मित्र आपके प्रयासों को नहीं समझते, तो यह सोचें:
“मैंने यह सेवा भगवान के लिए की। अब प्रतिक्रिया उनकी इच्छा है।”
2. “यह परीक्षा है, अंत नहीं”
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रिश्तों में कठिनाई आने पर समझें:
“भगवान मेरी भक्ति की परीक्षा ले रहे हैं।”-
जैसे प्रह्लाद ने पिता हिरण्यकश्यप के अत्याचारों को भगवान की लीला माना।
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3. “शरीर नश्वर है, रिश्ते अमर हैं”
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सच्चा बंधन वही है जो आत्मा से आत्मा का हो:
“आज यह व्यक्ति मेरा पिता/पुत्र है, कल नहीं रहेगा। पर भगवान तो सदा मेरे साथ हैं!”
3 व्यावहारिक उपाय (जब लड़ाई हो जाए)
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मौन धारण करें – क्रोधित होने पर “राम नाम” जपें।
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दूसरे का पक्ष सुनें – जैसे अर्जुन ने महाभारत में कृष्ण की बात मानी।
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क्षमा कर दें – “वह नादान है, मैं क्यों उसके कर्मों का बोझ उठाऊँ?”
अंतिम सत्य: भगवत भाव ही स्थायी है
“जो रिश्ते भगवान को केंद्र में रखकर बनते हैं, वे कभी नहीं टूटते।
क्योंकि भगवान थे, हैं और रहेंगे—पर शरीर और स्वार्थ तो क्षणभंगुर हैं।”
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